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कविता

अजूबा रंगमंच

उमेश चौहान


बड़ा अजूबा रंगमंच है
बदला-बदला सबका वेश।

कोई धार मुखौटा चोखा
देता हर दर्शक को चोखा
कोई लंबे बाल सँवारे
कोई है मुंडवाए केश।

कोई बोले रटी-रटाई
कोई कहे जिगर की खाई
कोई दुमुही जैसा डोले
कोई बोले केवल श्लेष।

कोई डुबो-डुबोकर खाए
कोई झूठी आस बँधाए
कोई भर घड़ियाली आँसू
हमदर्दी से आए पेश।

कोई दौलत से इतराए
कोई सत्ता पा बौराए
कोई सब्जबाग दिखलाता
बेंचे लेता सारा देश।

 


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